"अंधेरे का दीपक"
गाँव के बाहरी हिस्से में एक गरीब किसान, रामू, अपनी छोटी-सी झोपड़ी में रहता था। रामू के पास खेती के नाम पर बस एक बंजर ज़मीन का टुकड़ा था। वह दिन-रात मेहनत करता, लेकिन ज़मीन से कुछ खास उपज नहीं होती थी। गरीबी ने उसे हताश और गुस्सैल बना दिया था।
रामू की झोपड़ी के पास ही एक बूढ़ा बुजुर्ग, नारायण, रहता था। नारायण ने जीवन में बहुत संघर्ष देखा था और अनुभव से भरा हुआ था। एक दिन जब रामू खेत से थका-हारा लौटा, तो उसने गुस्से में झोपड़ी की दीवार पर लात मारते हुए कहा, "ये ज़मीन और मेरा भाग्य दोनों खराब हैं। मेहनत करने से भी कुछ नहीं बदलने वाला।"
नारायण ने यह सुना और मुस्कुराते हुए कहा, "रामू बेटा, अंधेरे को कोसने से उजाला नहीं होता। दीपक जलाना पड़ता है। अगर इस बार फसल बोने से पहले सही तरीके से खेत तैयार करो, खाद डालो और पानी दो, तो ज़मीन भी अपना साथ देगी।"
रामू को ये बात समझ नहीं आई। उसने तुनकते हुए कहा, "आप तो बस ज्ञान देने के लिए बैठे हो। मेहनत मैं करता हूँ, लेकिन जब ज़मीन ही खराब हो तो क्या करूँ?"
नारायण शांत स्वर में बोले, "अगर दीपक जलाने के लिए तेल और बाती ठीक से तैयार न हो, तो क्या वह जल पाएगा? मेहनत को सही दिशा में लगाओ। ज़मीन बंजर हो सकती है, लेकिन उसे उपजाऊ बनाना तुम्हारे हाथ में है।"
रामू ने पहले तो अनसुना कर दिया, लेकिन बुजुर्ग की बात उसके मन में कहीं गहरे उतर गई।
अगले दिन रामू ने ठान लिया कि इस बार नारायण की सलाह मानकर देखेगा। उसने अपने खेत को अच्छे से जोता, खाद डाली और नियमित पानी देने लगा। धीरे-धीरे मेहनत का असर दिखने लगा। कुछ महीनों में उसकी ज़मीन से पहली बार हरी-भरी फसल उग आई।
गाँववालों ने भी उसकी मेहनत और बदलाव को सराहा। रामू ने समझ लिया कि केवल भाग्य को कोसने से कुछ नहीं होता। मेहनत और सही दिशा में प्रयास करना ज़रूरी है।
अब रामू गाँव के बाकी किसानों को भी प्रेरित करता था। वह कहता, "अंधेरे को कोसने की बजाय, अपने हाथ से दीपक जलाओ। मेहनत और सही सोच से ही बदलाव संभव है।"
सीख:
सही दिशा में किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता। समस्या से भागने के बजाय उसका समाधान खोजो, और अपने हालात बद
लने की पहल खुद करो।