एक बड़ा राजा बना भिखारी
बहुत समय पहले, एक समृद्ध राज्य था जिसका राजा वीरेंद्र सिंह अपनी बुद्धिमानी, शक्ति और दयालुता के लिए प्रसिद्ध था। उसका राज्य सोने-चांदी से भरा हुआ था और प्रजा खुशहाल थी। राजा ने हर संभव प्रयास किया कि उसका राज्य समृद्ध रहे। लेकिन एक दिन उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जिसने सब कुछ बदल दिया।
राजा को अपने गौरव पर अत्यधिक गर्व था। वह मानता था कि उसका साम्राज्य और उसकी शक्तियां सदा के लिए हैं। एक दिन, एक वृद्ध साधु दरबार में आया और राजा से कहा, "राजन, जीवन अनिश्चित है। जो आज तुम्हारा है, वह कल तुम्हारा नहीं भी रह सकता। समय का चक्र सब बदल देता है।"
राजा ने साधु की बात को मजाक में उड़ा दिया और कहा, "मेरी शक्ति और धन कोई नहीं छीन सकता। मेरे पास अपार दौलत और शक्तिशाली सेना है।"
साधु मुस्कराया और बोला, "समय बताएगा।"
कुछ महीनों बाद, पड़ोसी राज्य ने अचानक हमला कर दिया। राजा वीरेंद्र सिंह की सेना हार गई। शत्रुओं ने न केवल राज्य छीन लिया, बल्कि सारा धन-दौलत भी लूट लिया। राजा को जंगलों में भागना पड़ा। कुछ ही दिनों में, जो कभी राजा था, वह एक साधारण व्यक्ति बन गया।
अब राजा के पास न तो धन था और न ही भोजन। उसे गांव-गांव भटकना पड़ा और दूसरों के दरवाजे पर भीख मांगनी पड़ी। एक दिन, जब राजा भीख मांग रहा था, उसे वही वृद्ध साधु मिला। साधु ने राजा को पहचान लिया और पूछा, "राजन, अब कैसा अनुभव हो रहा है?"
राजा की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, "मैंने घमंड किया, अपनी शक्ति पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया। मुझे समझ नहीं थी कि जीवन की सच्ची ताकत धन या सत्ता में नहीं, बल्कि विनम्रता और कर्मठता में है।"
साधु ने मुस्कराकर कहा, "राजन, गिरना जरूरी है ताकि इंसान अपने घमंड से उबर सके। लेकिन याद रखना, हार के बाद भी इंसान मेहनत और धैर्य से फिर उठ सकता है।"
राजा ने साधु की बात को गहराई से समझा। उसने अपनी स्थिति को स्वीकार किया और नए सिरे से मेहनत करना शुरू किया। धीरे-धीरे, उसने अपने ज्ञान और अनुभव से एक नई शुरुआत की। वह एक साधारण किसान बनकर जीवन यापन करने लगा, लेकिन उसके कर्म और संघर्ष ने उसे असली खुशी दी।
संदेश:
जीवन में धन और सत्ता स्थायी नहीं हैं। असली सफलता विनम्रता, कर्मठता और सीखने की चाह में है। अगर गिरावट आए, तो उसे अपनी ताकत बनाने का प्रयास करें। जीवन में जो भी परिस्थिति आए, उसे एक नया सबक मानें और आगे बढ़ते रहें।