Sritunjay World: जो दीख रहा है, वह सत्य नहीं है

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जो दीख रहा है, वह सत्य नहीं है

गुरु की अंतिम परीक्षा

एक रहस्यमयी गांव और एक पुरानी झोपड़ी



हरियाली से घिरे एक शांत गांव के कोने में एक पुरानी झोपड़ी थी — नीम की छांव में, तालाब के किनारे। उस झोपड़ी में रहते थे गुरु वासुदेव, जो वर्षों से एकांत में ध्यान और अध्यात्म का अभ्यास कर रहे थे। कहा जाता था कि उनके पास ऐसी गूढ़ शक्तियाँ थीं जो सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता।

एक दिन गांव में एक युवक आया — चेतन। उसका हृदय ज्ञान की भूख से भर चुका था, लेकिन उसकी आंखों में दुनिया को जीत लेने की चाह भी साफ झलकती थी। वह गुरु वासुदेव के चरणों में झुका और बोला:

"गुरुदेव, मुझे शिष्य बना लीजिए। मैं सत्य, आत्मज्ञान और प्रकृति का मार्ग सीखना चाहता हूं।"

गुरु मुस्कराए, लेकिन उनकी आंखों में एक रहस्य था। उन्होंने चेतन को शिष्य स्वीकार कर लिया — परंतु एक शर्त पर।

शर्त: जो दीख रहा है, वह सत्य नहीं है

गुरु ने कहा, "इस आश्रम में रहोगे, मोरों और हिरणों की देखभाल करोगे, ध्यान करोगे, पर तीन वर्षों तक कोई प्रश्न नहीं पूछोगे। फिर तुम्हारी अंतिम परीक्षा होगी।"

चेतन ने सिर झुका कर स्वीकृति दे दी।

वह नित्यप्रति मोरों को दाना देता, हिरणों को तालाब तक ले जाता, और गुरु के हर निर्देश का पालन करता। लेकिन एक बात हमेशा उसे विचलित करती — इन जानवरों की आंखों में इंसानी भावनाएं थीं, मानो वे कुछ कहना चाहते हों।

तीन वर्ष बाद: रहस्य की परतें खुलने लगीं

तीन वर्षों के बाद, गुरु वासुदेव ने चेतन को बुलाया और कहा: "अब समय आ गया है कि तुम अंतिम परीक्षा दो। जो इन वर्षों में नहीं देखा, अब देखो — और समझो कि यह जंगल तुम्हें क्या सिखा रहा था।"

चेतन जैसे ही तालाब के पास पहुँचा, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। मोर अब इंसानों में बदल रहे थे, और हिरण किसी श्राप से मुक्त हो रहे थे। तालाब के पानी में चेतन की परछाईं — किसी और के रूप में नजर आ रही थी। वह वह नहीं था जो तीन वर्ष पहले था।



सत्य का उद्घाटन

तभी पीछे से गुरु वासुदेव की आवाज आई, लेकिन अब वह वृद्ध की नहीं, बल्कि एक युवा की आवाज थी:

"यह आश्रम कभी एक गुरुकुल था, जहां ज्ञान का दुरुपयोग हुआ। शिष्यों ने लोभवश ज्ञान को अपवित्र कर दिया। ईश्वर ने उन्हें पशु बना दिया। तीन वर्षों से तुम उसी श्रापित भूमि को सेवा से शुद्ध कर रहे थे।"

गुरु ने आगे कहा, "मैं वही अंतिम शिष्य था, जिसने ज्ञान का दुरुपयोग किया था। यह मेरा दंड था — जब तक कोई सच्चा शिष्य न आए, मैं इसी रूप में रहूंगा। तुम वह हो।"

और फिर चेतन के वस्त्र बदलने लगे — शरीर से तेज निकलने लगा। उसकी आंखों में दिव्यता उतर आई। उसे उसकी असली पहचान मिल चुकी थी।

अंतिम वाक्य — जो आत्मा को झकझोर दे:

"जिसे हम गुरु मानते हैं, वह कई बार हमारी ही आत्मा का परिष्कृत रूप होता है — जो समय आने पर प्रकट होता है।"

अब आप सोचिए...
क्या आपके जीवन में भी कोई ऐसा रहस्य है जो आप रोज़ देखते हैं, पर समझ नहीं पाते?
या... हो सकता है आप भी किसी की परीक्षा में हों...!

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