Sritunjay World: सत्य को सिद्ध मत करो

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सत्य को सिद्ध मत करो

"गुरु के पाँच मौन उपदेश"



(शब्दों के पार, शांति की ओर)

स्थान: अरुणाचल की पहाड़ियों में बसा एक प्राचीन ध्यान केंद्र
समय: संध्या की बेला, जब सूर्य अस्त होने को है और आत्मा जागने को

शिष्य विवेकानंद ने महीनों की साधना के बाद जब गुरु त्रैलोक्यनाथ के चरणों में शरण ली, तो उसका पहला प्रश्न था:

“गुरुदेव, संसार को जीतने से पहले — क्या मुझे स्वयं को जीतना होगा?”

गुरु ने उत्तर में कुछ नहीं कहा। केवल आँखें बंद कर लीं और हाथ से एक संकेत किया।
शिष्य चकित रह गया — उत्तर मौन था!

कुछ क्षणों के बाद गुरु ने आँखें खोलीं और बोले—

❶ मौन पहला उत्तर है

“जो व्यक्ति हर प्रश्न का उत्तर बोलकर देता है, वह आत्मा की गहराई में उतरने से चूक जाता है।”
कई उत्तर मौन में जन्मते हैं, शब्दों में नहीं।

❷ सत्य को सिद्ध मत करो

“सत्य की कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती — वह स्वयं ही अपने भीतर सूर्य लेकर चलता है।”
जब तुम बार-बार स्वयं को सही साबित करने लगते हो, तब तुम सत्य से दूर और अहंकार के पास पहुँचते हो।

❸ पीड़ा को अपना आभूषण मत बनाओ

“जीवन में सबको पीड़ा मिलती है — पर उसे सजाकर पहनना, आत्मा को बोझिल बना देता है।”
अपनी पीड़ा को दुनिया में ले जाकर रोने से तुम उसे दोहरा नहीं, चौगुना कर देते हो। पी लेना ही असली तप है।

❹ प्रशंसा की भूख आत्मा की भटकाव है

“जो व्यक्ति हर काम की सराहना चाहता है, वह आत्मा से नहीं, समाज से जुड़ा है।”
सराहना तभी फल देती है, जब उसकी आवश्यकता न हो।

❺ आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु — तुलना

“दूसरे के जीवन से अपनी तुलना करोगे, तो या तो घमंड पाओगे, या हीनता।”
दोनों ही आत्मा को गिराते हैं। तुलना छोड़ो, केवल आत्मा के मार्ग पर चलो।




गुरु त्रैलोक्यनाथ ने अंत में कहा—

“हे विवेकानंद, इन पाँच बातों को यदि तुमने भीतर बसा लिया —
तो तुम्हें संसार नहीं जीतेगा,
तुम मौन से जीवन जीत लोगे।”

शिष्य की आँखों से आँसू बह निकले। लेकिन वह रो नहीं रहा था —
वह भीतर खिल गया था।

“गुरुदेव, आज समझ आया —
सच बोलने से नहीं,
सच जीने से जीवन बदलता है।”

** समाप्त **

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