मिट्टी की खुशबू
(एक प्रेरणादायक ग्रामीण कथा)
एक शांत सुबह थी, जब धुंध के परे सूरज की किरणें पहाड़ों से उतरती हुईं उस छोटे से गाँव को छूने लगीं। उस गाँव का नाम था “सोंधीपुर”, जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ था — खेतों से घिरा, धुएँ से उठती रसोई की खुशबू से महकता और चिड़ियों की चहचहाहट से गूंजता।
गाँव के अंतिम छोर पर एक पुराना मिट्टी का घर था। उस घर में रहते थे बाबूलाल काका, उम्र साठ के पार, लेकिन शरीर में अब भी गाँव जैसी सादगी और मेहनत की मजबूती थी। उनका मानना था:
"जो धरती को मेहनत से सींचता है, वही असली धनवान होता है।"
सुबह का दृश्य:
बाबूलाल काका कंधे पर पीतल की स्प्रे टंकी टाँगे हुए अपने खेत में खीरे के पौधों पर दवा छिड़क रहे थे। उनके चारों ओर हरे पत्ते, पीले फूल और मिट्टी की सोंधी खुशबू फैली हुई थी। पास ही उनकी मुर्गियाँ घूम रही थीं और पगडंडी के उस पार खेतों में रामू हल चला रहा था।
एक छोटी टोकरी पास रखी थी, जिसमें सब्जियाँ भरने का मन था, लेकिन उससे पहले फसल की रक्षा ज़रूरी थी।
संवाद और सीख
तभी गाँव का एक युवक, रवि, वहाँ से गुज़रा। उसने देखा और मुस्कुरा कर बोला, “काका! आपकी उम्र में भी इतनी मेहनत?”
बाबूलाल काका मुस्कराए और बोले:
“बेटा, धरती हमारी माँ है, और माँ की सेवा में उम्र नहीं देखी जाती। अगर हम आज इसे समय नहीं देंगे, तो कल यह हमें कुछ नहीं देगी।”
रवि ठिठक गया। उसने कभी खेती को गहराई से नहीं समझा था। उसके लिए शहर ही सपना था, और मिट्टी सिर्फ गंदगी। पर आज कुछ बदल रहा था।
काका ने आगे कहा:
“जब तू मोबाइल चला रहा होता है, तब कोई किसान खेत में हल चला रहा होता है। जब तू एसी में बैठा होता है, तब कोई इस गर्मी में फसल बचा रहा होता है। खाने की थाली में जो सब्ज़ी आती है, वो यूँ ही नहीं आती — हर बीज में मेहनत की कहानी होती है।”
रवि की आँखें नम थीं...
वो एक बार फिर खेत की ओर देखने लगा — खीरे के पौधों पर जमी ओस, पीले फूल, उड़ती धूप, और काका की मेहनत।
उसने वहीं निश्चय किया — अब वह भी खेती सीखेगा।
अंतिम सीख
"धरती से जो जुड़ जाता है, वह कभी खाली नहीं जाता।"
"शहर सपने दे सकता है, पर आत्मा को सुकून गाँव ही देता है।"
"मिट्टी में जो गंध है, वह सोने में कहाँ!"
कहानी से मिली प्रेरणा:
- मेहनत की कोई उम्र नहीं होती।
- खेती सिर्फ काम नहीं, संस्कार है।
- जो अपनी जड़ों से जुड़ा है, वही सबसे मजबूत होता है।
- हमारा भोजन, हमारे किसानों की तपस्या है — उसका सम्मान करें।